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रार नई ठानूंगा atal bihari vajpayee:1924-2018 |
बहरहाल वह गांधीनगर का सर्किट हाउस था जहाँ अटल बिहारी वाजपेई साहब से मिलना था। सुबह का वक़्त था। धड़कने हाथ से ज़ाहिर हो रही थीं। क़लम और क़ाग़ज़ जुड़ नहीं रहे थे। सर्किट हाउस साफ़ -सुथरा और भव्य था । अटलजी के कमरे के सामने पहुंचे तो एक शख़्स जिनके आधी आस्तीन के कुर्ते के सीने में हीरे जड़ित कमल चमचमा रहा था, उन्होंने विनम्रता से पूछा आप कौन और कहाँ से आईं हैं। परिचय के बाद उनका यह भी आग्रह था यूं इन्तज़ार में बैठे मत रहिये अपना मकसद बताइये और भीतर जाइये। दस्तक देने पर मुझ से पूछा गया कि आप इंटरव्यू के लिए आईं हैं तो सवालों की सूची दीजिये। सवाल जो भी ज़ेहन में थे जल्दी-जल्दी काग़ज़ पर उतारे और भेज दिए। तब तक हीरे जड़ित कुर्ते वाले शख़्स वहीं थे और उनका भाव मदद का ही था। तब दैनिक भास्कर को बहुत काम लोग जानते थे। इंदौर से जिस अख़बार का नाम बुलंद था वह नईदुनिया था लेकिन बड़ी बात यह थी भास्कर ने अपने नए और छोटे पत्रकार पर बड़ा भरोसा किया था। थोड़ी देर बाद भीतर से जवाब आया कि वक़्त कम है आप अटलजी से चलते-चलते सवाल कर सकती हैं। मैंने राजनीतिक हालत पर अपनी समझ के मुताबिक चार-पांच सवाल किये जो भास्कर में प्रमुखता से प्रकाशित हुए। कन्फेस करना चाहूंगी कि एक दो बचकाने सवाल भी थे। उन्हें मैंने नहीं लिखा। बातचीत में उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई सवाल बाकी हो तो शाम को अहमदाबाद की प्रेस कांफ्रेंस में किया जा सकता है।
अटलजी का विराट व्यक्तित्व दिल पर असर कर गया। उन्होंने कहीं भी यह असर नहीं लेने दिया कि मैं नई पत्रकार हूँ और वे कद्दावर नेता। उनकी आवाज़ की गहराई का असर अब भी गहरे तक है। शब्दों का चयन ही तो उन्हें कवि भी बनाता है। मुझे फ़ख्र है कि भारतीय राजनीति की इस बड़ी शख्सियत से मेरी भी एक मुलाक़ात है। विपक्ष में होने के बावजूद जिन्हे पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने सराहा और खुद अटलजी जिन्होंने बांग्लादेश के निर्माण के बाद इंदिरा गांधी को दुर्गा कहा। पक्ष के बीच ऐसा विपक्ष आज रुख़सत हो गया। एक बेहतर युग का अवसान है ये। अलविदा अटलजी। अटल कवि मन वाले वाजपेयी जी को शत-शत नमन।