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original picture of mastani(1699 -1740 ) |
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sanjay leela bhansali 's mastani |
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mastani mazar/samadhi in pune |
मस्तानी कहने को मराठा साम्राज्य के पास बुंदेलखंड रियासत की ओर से नजराने में आई हो लेकिन उसने साबित किया कि वह उन बेजान सौगातों की तरह नहीं है। वह अपनी धड़कनों की मलिका थी। वह योद्धा थी, घुड़सवारी, तलवारबाजी जानती थी, बेहद खूबसूरत थी और संगीत उसकी रगों में था। हम जिस बुंदेलखंड को 'सौ डंडी एक बुंदेलखंडी' कहावत से जानते हैं, उसी बुंदेलखंड की वह पैदाइश थी। बुंदेलखंड के राजपूत राजा छत्रसाल को मोहम्मद खान बंगश से खतरा था। उसका आक्रमण किसी भी क्षण उनके राज को तबाह कर सकता था। गरुड़ दृष्टिवाले बाजीराव पेशवा यानी मराठा साम्राज्य से मिली ताकत से ही वे राज्य को बचा पाए। सौगात में झांसी, कलपी,सागर और 33 लाख सोने के सिक्के दिए गए। मस्तानी भी पहुंची। मस्तानी-बाजीराव की कुरबत को मराठा राजघराना पचा नहीं पाया। मस्तानी राजपूत राजा और मुस्लिम मां रूहानी बाई की संतान थी। बाजीराव की शोहरत और वीरता उसे एक महायोद्धा में तब्दील करती जा रही थी लेकिन महल के गलियारे बाजीराव की पत्नी काशीबाई और मां राधाबाई के विरोध की चुगली करने लगे थे। काशीबाई मस्तानी को कभी कुबूल नहीं कर पाईं लेकिन अपने पति की मोहब्बत को चाहकर भी खारिज ना कर सकी।
पेशवाई मस्तानी-बाजीराव के बेटे को भी नहीं अपना पाती। वह उसे मुसलमान मानते हुए दूरी बनाए रखती है। रजवाड़ों के अजीब दस्तूर हैं जोधा-अकबर के पुत्र को मुगल सल्तनत का वारिस माना गया जबकि बाजीराव-मस्तानी की संतान को नहीं अपनाया गया। बाजीराव (बाजीराव 1700-1740) ने मस्तानी के लिए पुणे में मस्तानी महल का निर्माण कराया। मस्तानी और परिवार के द्वंद के बीच वह युद्ध लड़ता गया और चालीस बरस की उम्र में बुखार से चल बसा। मस्तानी इस दुख को सह ना सकी और उसने खुदकुशी कर ली। इतिहास की किताबों में यह स्पष्ट नहीं है कि मस्तानी ने जौहर किया। मस्तानी की कब्र आज भी पुणे से साठ किलोमीटर दूर एक गांव में है। हिंदू-मुस्लिम सभी वहां श्रद्धा से जाते हैं। हिंदू उसे समाधि और मुस्लिम मजार कहते हैं। इस जगह को संभालने वालों का कहना है कि जब मस्तानी और बाजीराव को एकदूसरे से कोई दिक्कत नहीं थी तो हम फर्क करने वाले कौन होते हैं।
बाजीराव-मस्तानी की संतान के बारे में कहा जाता है कि उसे काशीबाई ने पाला। उसका नाम कृष्णाराव भी था और शमशेर बहादुर भी। बाजीराव - मस्तानी अपने पुत्र को कृष्णा नाम के साथ ब्राह्मण संस्कार से बड़ा करना चाहते थे लेकिन ब्राह्मणों के विरोध के कारण बाजीराव तय करते हैं कि वह मुस्लिम मां का बेटा है इसलिए उसका नाम शमशेर बहादुर होगा। बाद में वह बांदा का नवाब बनता है और पानीपत की तीसरी लड़ाई में अपने चचेरे भाईयों के साथ मारा जाता है।
यह इतिहास है लेकिन संजय लीला भंसाली ने इसे फिर जिंदा कर दिया है जिसका आधार नागदेव इनामदार का मराठी उपन्यास राव है। इनकी मोहब्बत फिर जिंदा हो उठी है और जिंदा हो चुका है मस्तानी का जुनून। तुझे याद कर लिया है आयत की तरह तेरा ज़िक्र होगा अब इबादत की तरह... मस्तानी के ये लफ्ज उसकी बाकी जिंदगी का अक्स हैं। काशीबाई की भूमिका में प्रियंका चोपड़ा हैं और वे दीपिका के साथ हर दृश्य में बेहतर हैं। ुनृत्य में भी माहिर नजर आती हैं। दूसरी स्त्री के आगमन से पत्नी काशीबाई के दर्द को प्रियंका ने गहराई से जिया है। मराठी तेवर कमाल का पेश हुआ है। रणवीर सिंह ने भी मराठी एक्सेंट को खूब साधा है और पेशवाई को रूह में उतारा है। मोहब्बत और योद्धा का जुनून आंखों से जाहिर होता है। वे मल्हारी गीत में भी कमाल करते हैं। मस्तानी यानी दीपिका की यह लगातार तीसरी फिल्म है जो उन्हें बेहतरीन साबित करती है। पीकू , तमाशा के बाद बाजीराव-मस्तानी दीपिका को नए आयाम देती है। मराठा साम्राज्य के कालखंड का हर फे्रम मुकम्मल मालूम होता है। जयपुर फिल्म के कई दृश्यों का जोड़ीदार है। छत्रसाल का बुंदेलखंड हो या मराठाओं का पुणे फिल्म को सहारा जयपुर के जीवंत आमेर से ही मिलता है। फिल्म के कई दृश्य जयपुर में शूट हुए हैं।