बात ऐसी स्त्री की जिसने अपनी माँ को स्तन कैंसर से मरते हुए देखा और जब जाना कि उनके अन्दर भी वही जीन है तो उन्होंने स्तन ही हटवा लिए . यह फैसला मशहूर हॉलीवुड अदाकरा एंजलीना जॉली का है . क्या वाकई यह एक जॉली वुमन का सहस से भरा निर्णय है जिससे दुनिया की तमाम स्त्रियों को एक दिशा मिलेग। किसी अंग को महज आशंका में यूं कटवा देना बीमारी का बर्बर इलाज नहीं ?.
हॉलीवुड अभिनेत्री एंजलीना जोली के
इस निर्णय का विरोध ·रते हुए एक
अमेरिकी शिक्षिका ने ·हा है कि वे
अमीर हैं, उनके पास सारी सुखसुविधाएं
हैं, उनकी देखभाल के लिए लंबा-चौड़ा स्टाफ मौजूद है इसलिए वे
महंगी सर्जरी करा सकती हैं। एंजलीना
के इसे उजागर करने से मेरी जैसी
कई मध्यमवर्गीय परिवारों को बेहद
तकलीफ हुई है क्योंकि हम इस खर्च
का भार नहीं उठा सकते। मेरी मां को
भी कैंसर था और मेरे अंदर भी
बीआरएसी 1 जीन हो सकता है लेकि नमैं परीक्षण को करा पाने में सक्षम नहीं।
जर्सी में नन्हें बच्चों को पढ़ाती हैं।
एंजलीना ने जिस न्यू यॉर्क टाइम्स
अखबार में लिख कर अपने स्तन
हटवाने की घोषणा की है बाद में उसी
अखबार के संपादक ने भी लिखकर
इस बात स्वीकारा है कि एंजलीना
का सच पूरे अमेरिका का सच नहीं हो
सकता।
सवाल यह उठता है कि सिर्फ
आशंका में आप इतना बड़ा निर्णय कैसे
ले सकते हैं? एंजलीना के मुताबिक
जिस ब्रेस्ट कैंसर का खतरा पहले 83
फीसदी था वह अब घटकर पांच फीसदी रह गया है। यह पांच फीसदी
.क्या है जो बच गया है? अगर सिर्फ
आशंका के चलते इतना कुछ हुआ है तो
यह हमारे साथ क ब नहीं होती। घर से
चलते वक्त से रात को सोने तक हर
पल हम आशंकित हैं। फिर भी मानव अपने हौसलों से जीता है। मनुष्य को शुरुआत में हर फल चखने से
पहले आशंका ही हुई होगी लेकिन फिर
भी उसने चखा होगा। उसी का नतीजा
है की आज हमारे पास खाद्य और
अखाद्य की लंबी फेहरिस्त है। रहस्यों से
को दी वह बेहतर से बेहतर होने की
ओर थी। आज भी वही सब हो रहा है
लेकिन आज सब तकनीक औरआधुनिक विज्ञान के हवाले कर दिया
गया है जो की सिर्फ चंद समर्थ लोगों
की पहुंच में है। वह एक ऐसा निजाम रचती
हैं कि जो समर्थ नहीं है वह भी उसी
दिशा में प्रवृत्त हो। सिलेब्रिटी को कुछ
होना और फिर उसका सुनियोजित
प्रचार क हीं ज्यादा आशंकाओं को जन्म
देता है।
एंजलीना ने अपने लेख को काफी
भावनात्मक रंग में रंगा है। यह लेख
एक सामान्य स्तंभ की तरह अखबार मेंजगह पा गया ऐसा नहीं है। अखबार के लिए भले ही यह रहस्योद्घाटन
ब्रेकिंग न्यूज हो लेकिन एंजलीना के हर
शब्द पर कई बार विचार हुआ होगा।
वैसे एंजलीना ने कहाँ कैसे और कब
इसे कराया। यह सब लेख में है। वे लिखती हैं उनकी मां
दस साल तक कैसर से लड़ते हुए 56
साल में चल बसीं और नवासे-नवासियो
को अपने वात्सल्य की छाया
नहीं दे पाईं। एंजलीना ने लिखा है कि
कम अज कम उनके बच्चों को यह डर
नहीं है कि उनकी मां भी एक दिन ब्रेस्ट
कैसर से मर जाएगी।
यहां यह ·कहना बिलकुल भी ठीक
नहीं होगा कि एंजलीना जैसी
परिस्थितियों से घिरने पर हरेक को
मैस्टैकटॉमी यानी स्तन हटवा लेने
चाहिए। यह जीन वाकई जिन्न होता है
यह निजी हालत पर ज्यादा निर्भर
क रता है। सैंतीस वर्षीय एंजलीना के हालात से अमेरिकी स्त्रियों की तुलना
नहीं हो सकती और भारतीयों की तो
बिलकुल भी नहीं। आशंकाओं का
बिजनेस बहुत बड़ा है। इसके मायाजाल
को समझना जरूरी है। दुनिया के
ज्यादातर शोध आशंकाओं पर ही होते
है। मनुष्य इतने बरसों से दीर्घायु जीवन
कैसे जीता रहा इस पर नहीं होता। कमजांच, कम दवाएं कैसे काया को निरोगी
रख सकती हैं इस बारे में बताने वाला
कोई नहीं। यह धंधा बड़ा विचित्र है।
पहले परीक्षण, फिर स्तन हटवाना और
अंत में उन्हें नए सिरे से इम्प्लाट करानापहले परीक्षण, फिर स्तन हटवाना और
बड़ा निवेश मांगता है और अब तो
एंजलीना उससे जुड़ गई हैं। दुनिया
हॉलीवुड की इस मूवी स्टार को पसंदएंजलीना उससे जुड़ गई हैं। दुनिया
करती है। उनके नेक कामों के चर्चे पूरी
दुनिया में पहले ही हैं। उन्होंने
अफगानिस्तान में स्कूल खोले हैं। यूएनकी वे गुडविल एंबेसेडर रही हैं। कहा
जा स·ता है कि बीआरएसी1 जीन ने
भी एंजलीना को अपना ब्रांड एंबेसेडर
चुनने में कोई देरी देरी नहीं की है । वे 37 की हैं
और इसी उम्र के आसपास ब्रेस्ट कैंसर
का खतरा भी सर्वाधिक होता है। आम
महिला को कतई एंजलीना के पदचिन्हों
पर चलने की जरूरत नहीं है। अन्य कैंसर की तुलना में
ब्रेस्ट कैंसर का सर्वाइवल रेट 93
प्रतिशत है। जोली का यह कहना ठीक
नहीं कि मेरे केस से अन्य महिलाओं
को प्रेरणा मिलेगी। जीवन को
चिकीत्स्कीय झंझटों में डालकर आगे
बढ़ाने की बजाय बेहतर है कि उसे
कुदरती बनाया जाए क्योंकि हम हैं तो
आखिर माटी के ही पुतले।