likh dala
कभी लिखा तुमको दुआ तो कभी ख़ुदा लिख डाला
रविवार, 21 अप्रैल 2013
जान मेरी
जान मेरी
जाने किस पड़ाव पर हूँ ज़िन्दगी के
कोई वाक़या नहीं
कोई मसला नहीं
कोई सिलसिला नहीं
कोई इल्तजा नहीं
कोई मशवरा नहीं
कोई एतराज़ नहीं
कोई ख़लिश नहीं
कोई रंजिश भी नहीं
है तो बस मोहब्बत की वह पाक सुराही
छलक रहा है जहाँ से
रंग
ए
सुकूं
अब भी मेरे लिए .
1 टिप्पणी:
डॉ. मोनिका शर्मा
ने कहा…
:) शुभकामनायें
21 अप्रैल 2013 को 11:30 pm
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