क्या मजाक है कि देश को दहला देने वाली घटना का प्रमुख आरोपी ही मौत की नींद सो गया। हत्या, आत्महत्या वजह चाहे जो हो यह कितना विचित्र है कि वह
जेल में ही मर जाता है। दरअसल 16 दिसंबर की रात बहादुर लड़की रोशनी
के साथ जो भी हुआ वह भारतीय व्यवस्था की परत दर परत पोल खोल रहा है।
दुष्कर्म के बाद फैंक दी गई रोशनी और उसके मित्र की नग्न देह के पास कोई नहीं ठहरता। पुलिस वाले डेढ़ घंटे तक बहस करते हैं कि यह मामला जिस थाने के अंतर्गत आता है। ट्रीटमेंट तो देर से मिलता ही है तेरह दिन तक जिंदगी और मौत से जूझ रही रोशनी को
रातोंरात सिंगापुर रैफर कर दिया जाता है। वहां से फिर वह जिंदा नहीं
लौटती। अब जब फास्टट्रैक कोर्ट में मामले की सुनवाई चल रही थी कि प्रमुख
आरोपी रामसिंह के खुदकुशी करने की खबर फैल गई है। जेल में मारा गया है
रामसिंह। सबसे सुरक्षित जेलों में से एक तिहाड़ जेल में। कैसा संयोग है
कि देश की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी इस जेल की अधीक्षक भी रह चुकी
हैं और रामसिंह कभी उनके रिएलिटी शो आपकी कचहरी में भी तशरीफ ला चुका
है। जहां वह एक दुर्घटना में क्षतिग्रस्त हुए अपने हाथ के मुआवजा का दावा
करने आया था। किरण बेदी कहती हैं कि वह परिस्थितियों से समझौता करने वालों
में से नहीं था। उसके पिता का क़हना है कि वह मरा नहीं मारा गया है, जेल
में उसके साथ दुष्कर्म हुआ था ,उसकी मां कहती हैं कि उसने तो अपना अपराध
पहले ही कुबूल लिया था। हमने भी कह दिया था कि अगर वह दोषी है तो उसे
फांसी होनी चाहिए लेकिन वह खुद को नहीं मार सक ता। उसके वाकील कि राय में
वह हताश नहीं था और उसे अदालत ने स्वयं रिश्तेदारों से मिलने की भी अनुमति
दी थी। रामसिंह की जेल में मौत कतई सामान्य घटना नहीं है। हमारा तंत्र
बताता है कि हम न पीडि़त की रक्षा करने के योग्य हैं और न आरोपी की । एक
वरिष्ठ वकील की बात भी गौर करने लायक है कि कई देशों में मीडिया ट्रायल
नहीं होने दिया जाता। आरोपी और पीडि़त दोनों की पहचान गुप्त रखी जाती है।
हमारे यहां हम आरोपी पर आरोप सिद्ध होने से पहले ही उसे बड़ी सजा दे देते
हैं। हम उस हक की रक्षा ही नही कर पाते जो देश का संविधापन एक नागरिक को
देता है। फिर क्या फायदा लीगल ट्रायल का ? आज हालात यह हैं कि रोशनी का
परिवार हो या रामसिंह का दोनों एक ही कतार में इसलिए खड़े हो गए हैं
क्योंकि अब वे भी एक फरियादी हैं। उन्हें यह मौका हमारे सिस्टम की
नाकामी ने दिया है। देश की संवेदना को झकझोर कर रख देने वाली घटना का खास आरोपी अब जिंदा ही नहीं है।
राम सिंह तुम्हारी सजा पर अफ़सोस नहीं होता लेकिन तुम्हारी इस तरह मौत पर हो रहा है।
राम सिंह तुम्हारी सजा पर अफ़सोस नहीं होता लेकिन तुम्हारी इस तरह मौत पर हो रहा है।