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brave girl: ham sab malala hain |
पडोसी मुल्क में जहाँ पढना चाहने वाली किशोरी मलाला पर गोली दागी जा रही वहीँ हमारे मुल्क बयानों के बाण गहरे घाव कर रहे हैं.
इन शब्दों को लिखते हुए स्वर प्रार्थना में डूबे हुए हैं। पंद्रह साल की मलाला
युसुफजई के लिए इसके सिवाय किया भी क्या जा सकता है। महज
स्कूल जाते रहने की जिद एक बच्ची को मौत देने का कारण कैसे बन
सकती है। नौ अक्टूबर को मलाला के सर में उस वक्त गोली मारी गई जब
वह परीक्षा देकर बस से घर लौट रही थी। दो अज्ञात व्यक्ति नकाब ओढे़ बस
में चढ़े और पूछा कि तुममें से मलाला कौन है। मलाला के गोली लगते ही
बस के फर्श पर खून फैल गया। हमले में उसकी दो सहेलियां भी घायल हो
गईं। शाजिया को गोली उसके कंधे पर लगी। इस दर्दनाक मंजर की दास्तान
दोहराते हुए मलाला की दोस्त शाजिया की में कोई खौफ नहीं
तैरता। वह कहती है, मलाला ठीक हो जाएगी और हम फिर स्कूल जाएंगे।
मलाला को पता था कि उसके साथ यह हादसा हो सकता है। उसे लगातार
धमकियां भी मिल रही थीं, लेकिन एक दिन भी वह स्कूल जाने से नहीं कतराई।
पाकिस्तान की स्वात घाटी बेहद खूबसूरत है, लेकिन गोरे, सुर्ख चेहरे
तालिबानियों से आतंकित हैं। तालिबान का मानना है कि मुसलमान लड़कियों की जगह स्कूल में नहीं, घर में है। उन्होंने उनके स्कूल जाने पर पाबंदी लगा दी है। मलाला वह लड़की है जिसने पढ़ाई को अपना हक मानते
हुए तालिबानियों का विरोध किया। पिता जियाउद्दीन कवि और स्कूल संचालक हैं। मलाला ने ग्यारह साल की उम्र में बीबीसी की उर्दू सेवा के लिए गुल मकई नाम से डायरी लिखी। पांच जनवरी,2009 को वह लिखती है
मैं स्कूल के लिए तैयार हो रही थी और वर्दी पहनने ही वाली थी कि मुझे याद आया कि प्रिंसिपल ने हमसे स्कूल की वर्दी नहीं पहनने के लिए कहा है। उन्होंने कहा है कि हमें सादे कपड़ों में स्कूल आना होगा, इसलिए
मैंने अपनी पसंदीदा गुलाबी रंग की पोशाक पहनी है। मेरी सहेली ने मुझसे पूछा, खुदा के लिए सच-सच बताओ कि क्या हमारे स्कूल पर तालिबान हमला करेगा? सुबह असेंबली में हमसे कहा गया था कि हम रंग-बिरंगे परिधान न पहने क्योंकि तालिबान को इस पर आपत्ति होगी।
सात जनवरी को मलाला ने लिखा मैं मोहर्रम की छुट्टियों के लिए बुनैयर आई हूं। यहां के पहाड़ और हरे-भरे खेत बहुत पसंद हैं। मेरी स्वात घाटी भी बेहद खूबसूरत है लेकिन वहां शांति नहीं है। चौदह जनवरी को
लिखा, स्कूल जाते समय मेरा मूड बिलकुल अच्छा न था क्योंकि कल से सर्दी की छुट्टियां शुरू हो
रही हैं। प्रिंसिपल ने छुट्टियों की तो घोषणा कर दी लेकिन ये नहीं बताया कि स्कूल दोबारा कब क्लेगा।
तालिबान ने पन्द्रह जनवरी से लड़कियों की पढ़ाई पर प्रतिबंध की घोषणा की है। पन्द्रह जनवरी को उन्होंने लिखा कि रातभर तोप की गोलीबारी का शोर होता रहा। आजमैंने अखबार में बीबीसी उर्दू के लिए लिखी गई अपनी डायरी पढ़ी। मेरी मां को मेरा उपनाम गुल मकई पसंद आया और उन्होंने मेरे पिता से कहा,
क्यों न हम इसका नाम बदलकर गुलमकई रख दें। मुझे भी ये नाम अच्छा लगा क्योंकि मलाला का मतलब है शौक में डूबा हुआ इनसान।
इसी मलाला को मार डालने के इरादे से उस पर हमला किया गया।
इलाज के लिए उसे इंग्लॅण्ड भेज दिया गया है और पीछे पूरा देश उसकी
सलामती की दुआ कर रहा है। वाकई मलाला के साहस को सौ-सौ सलाम है कि इतनी
सी उम्र में इस लड़की में इतना हौसला समा गया है। इतना कि दुश्मनों की धमकी, गोली सब बेअसर। एक
बच्ची के इरादे कट्टरपंथी तालिबान को इस कदर हिला देते हैं कि वह बंदूक उठाकर मार डालना चाहते
हैं। कलम थामने की चाहत जान की कीमत पर पूरी होती है। पाकिस्तान की पत्रकार सोनिया
फतह लिखती हैं कि मलाला पर हमले ने हर आंख को नम कर दिया है। जाहिर है कि
विचार बुलैटप्रूफ होते हैं। आप कितने ही लोगों को मार दें, उड़ा दें, काट दें विचारों का कुछ भी नहीं
बिगडेग़ा। संभव है की मलाला पर इस हमले के बाद कनफ्यूज पाकिस्तानी इस दुविधा से उबरेंगे की उन्हें किस दिशा में जाना है .यूं देखा जाए तो भारत में भी हालात बेहतर नहीं हैं। बेटियों के लिए जो बयान हैं वे किसी गोली से कम नहीं। लड़की की शादी सोलह में कर दो,गोत्र में ब्याह करने वालों के
खिलाफ कानून बना दो, नब्बे फीसदी लड़कियां स्वेच्छा से दुष्कर्म कराती हैं। किस दौर में जी रहे हैं हम? इन
जिम्मेदार लोगों की जुबां पर कैसे तालिबान सवार हो गए हैं ?