रिश्ता अब फ़रिश्ता सा है
बहुत करीब बैठे भी बेगाने से हैं
एक पीली चादर बात करती हुई सी है
बाल्टी का रंग भी बोल पड़ता है कई बार
वह बांस की टूटी ट्रे भी सहेजी हुई है
बाबा की पेंटिंग तो रोज़ ही रास्ता रोक लेती है
उन खतों के मुंह सीले हुए से हैं
वह ब्रश, वह साबुन, सब बात करते हैं
किसी के खामोश होने से
कितनी चीज़ें बोलती हैं
मुसलसल
मैं भी बोलना चाहती हूँ तुमसे
इतना कि हलक सूख जाए
और ये सारी बोलियाँ थम जाए
मेरी इनमें कोई दिलचस्पी नहीं
तुम बोलो या फिर मुझसे ले लो इन आवाज़ों को समझने का फ़न.
बहुत करीब बैठे भी बेगाने से हैं
एक पीली चादर बात करती हुई सी है
बाल्टी का रंग भी बोल पड़ता है कई बार
वह बांस की टूटी ट्रे भी सहेजी हुई है
बाबा की पेंटिंग तो रोज़ ही रास्ता रोक लेती है
उन खतों के मुंह सीले हुए से हैं
वह ब्रश, वह साबुन, सब बात करते हैं
किसी के खामोश होने से
कितनी चीज़ें बोलती हैं
मुसलसल
मैं भी बोलना चाहती हूँ तुमसे
इतना कि हलक सूख जाए
और ये सारी बोलियाँ थम जाए
मेरी इनमें कोई दिलचस्पी नहीं
तुम बोलो या फिर मुझसे ले लो इन आवाज़ों को समझने का फ़न.