कल उर्दू के बेहतरीन अफसानानिगार सआदत अली हसन मंटो की ९८वीं सालगिरह थी.उनके अंदाज़े बयां को सजदा करते हुए एक अफ़साना और एक हकीकत उन हमज़ुबां दोस्तों के नाम जो कुछ अच्छा पढ़ने की उम्मीद में इस ब्लॉग पर आते हैं . यूं तो मंटो के बारे में कहने को इतना कुछ है कि मंटो पढ़ाई-लिखाई में कुछ ख़ास नहीं थे कि मंटो कॉलेज में उर्दू में ही फ़ेल हो गए थे कि शायर फैज़ अहमद फैज़ मंटो से केवल एक साल बड़े थे कि उन्हें भी चेखोव कि तरह टीबी था कि वे बेहद निडर थे कि उनकी कई कहानियों पर अश्लीलता के मुक़दमे चले कि बटवारे के बाद वे पकिस्तान चले गए कि उन्होंने दंगों की त्रासदी को भीतर तक उतारा कि वे मित्रों को लिखा करते कि यार मुझे वापस बुला लो कि उन्होंने ख़ुदकुशी की नाकाम कोशिश की और ये भी कि वे बहुत कम [४३] उम्र जी पाए गोया कि चिंतन और जीवन का कोई रिश्ता हो . उफ़... उनके बारे में पढ़ते-लिखते दिल दहल जाता है और उनकी कहानियाँ तो बस इंसान को चीर के ही रख देती हैं. बेशक मंटो का फिर पैदा होना मुश्किल है. हमारा नसीब कि उनका लिखा अभी मिटा नहीं है. एक अर्थ में मंटो सव्यसाची थे हास्य व्यंग्य पर उनका बराबर का अधिकार था. पहले पेश है उनकी एक छोटी लेकिन मार्मिक कहानी ...
लूट का माल वापस पाने के लिए पुलिस ने छापे डालने शुरू कर दिए. भय के मारे लोग लूटे हुए माल को वापस फेंकने लगे. कुछ लोगों ने मौका पाते ही इस माल से मुक्ति पा ली ताकि वे क़ानून के चंगुल से बच जाएं. एक आदमी मुश्किल में पड़ गया . उसके पास किराने के व्यापारी से लूटी हुई शकर के दो बोरे थे . एक तो उसने जैसे-तैसे करके पास के कुँए में फेंक दी. दूसरी जब फेंकने गया तो अपना संतुलन खो बैठा और बोरी के साथ खुद भी कुँए में गिर पड़ा. छपाक आवाज़ सुनकर लोग इकट्ठे हो गए, कुँए में रस्सी उतारी गयी . दो युवक कुँए में उतरकर उस आदमी को बहर ले आये पर कुछ समय में ही वह चल बसा. दूसरे दिन जब लोगों ने कुँए का पानी पीने के लिए निकला तो वह मीठा था. इस तरह उस आदमी की कब्र पर आज भी घी के दीये जलते हैं
...और अब एक हकीकत
मुग़ल ए आज़म से प्रसिद्धि पानेवाले के. आसिफ उन दिनों नए-नए डिरेक्टर थे और फूल नाम कि फिल्म बना रहे थे. इसी काम के लिए वे एक दिन मंटो के घर गए. मंटो से कहा कि कहानी सुनाने आया हूँ . मंटो ने मजाक किया -'तुम्हें पता है कहानी सुनने की भी फीस लेता हूँ ' यह सुनकर आसिफ उलटे पैर लौट गए मंटो मानाने के लिए दौड़े लेकिन आसिफ तब तक जा चुके थे. मंटो को बड़ा पछतावा हुआ.
कुछ दिन बाद एक आदमी लिफाफा लेकर मंटो के घर आया .मंटो ने लिफाफा खोला तो उसमें सौ-सौ के पांच नोट थे और एक चिट्ठी भी- 'फीस भेजी है कल आ रहा हूँ'. मंटो स्तब्ध रह गए उन दिनों कहानी लिखने के ही उन्हें बमुश्किल ३०-३५ रुपये मिलते, और कहानी वह भी किसी और की लिखी हुई को सिर्फ सुनने का पांच सौ रूपया. दूसरे दिन सुबह नौ बजे आसिफ उनके घर पहुंचे. -'डॉक्टर साहब फीस मिल गयी न ? मंटो शर्मिंदा महसूस करने लगे. पल भर सोचा कि रुपये वापस कर दूं, तभी आसिफ बोले यह पैसा मेरे या मेरे पिता का नहीं है प्रोड्यूसर का है. मेरी यह भूल थी कि आपकी फीस के बारे में सोचे बगैर ही आपके पास आ गया. चलिए कहानी सुनने के लिए तैयार हो जाइए . किसी और की लिखी कहानी सुनाने के बाद आसिफ ने पूछा-'कैसी है ?'
'बकवास है', मंटो ने जोर देकर कहा. 'क्या कहा?' अपने होंठ काटते हुए आसिफ ने कहा. मंटो ने फिर कहा बकवास. आसिफ ने उन्हें समझाने का का प्रयास किया. मंटो ने कहा - 'देखिये आसिफ साहब, आप एक बड़ा वज़नदार पत्थर लाकर भी मेरे सर पर रख दो फिर ऊपर बड़ा हथौड़ा मारो तब भी यही कहूँगा कि यह कहानी बेकार है . आसिफ ने मंटो का हाथ चूमते हुए कहा सचमुच ही बकवास है आपके पास यही सुनने आया था . आसिफ ने उस कहानी पर फिल्म बनाने का इरादा छोड़ दिया. मंटो कि साफगोई पर आसिफ फ़िदा हो गए थे वर्ना ५०० रुपये में इतनी ताकत है कि वह कचरा कहानी को भी बेमिसाल कहला सके.
पुस्तक सन्दर्भ 'मंटो एक बदनाम लेखक ' का है जिसे गुजराती के ख्यात व्यंग्य रचनाकार विनोद भट्ट ने मंटो कि तलाश में लिख डाला है. पुस्तक के प्रारंभ में विनोदजी लिखते हैं
लाहौर कि उस कब्र को
जिसमें युगांतरकारी कथाकार
सआदत अली हसन मंटो लम्बी नींद सो रहा है
प्लीज़!डोंट डिस्टर्ब हिम