तुम्हारे आते ही भीग जाती हैं ये आंखें
प्रेम ऐसा ही स्वतःस्फूर्त भाव है जो एक इंसान का दूसरे के लिए उपजता है। यह भाव इस कदर हावी होता है कि उसके सोचने समझने की ताकत छिन जाती है। यूं कहें कि वह इंसान दिल के आगे इतना मजबूर होता है कि लगता है दिमाग कहीं सात तालों में बन्द पड़ा है। ...लेकिन दुनिया तो यही मानती है कि प्रेम अंधा होता है। दरअसल प्रेम है ही आंखों को बन्द कर डूबने का जज्बा। जिसमें यह नहीं वह दुनिया की सारी चीजें कर सकता है, प्रेम नहीं।
इश्क आपको दिशा देता है। एक मार्ग। शायद वैसे ही जैसे गुरु अपने शिष्य को। ईश्वर अपने भक्त को। प्रेम में डूबा शख्स नृत्य की मुद्रा में दिखाई देता है। स्पन्दित सा। एक धुन लगी रहती है उसे। वह खिल- सा जाता है कि कोई है जो पूरी कायनात में सबसे ज्यादा उसे चाहता है। यह चाहत उसे इतनी ताकत देती है कि वह सारी दुनिया से मुकाबला करने के लिए तैयार हो जाता है। यह जज्बा केवल और केवल मनुष्य के बीच पनपता है। किसी मशीन या जानवर ने अब तक ऐसे कोई संकेत नहीं दिए हैं। ... और सच पूछिए तो हमारे यहां इस जज्बे से निपटने के प्रयास अब भी मशीनी और कुछ हद तक जानवरों जैसे ही हैं। हमें कई बार इनका पता पुलिस से चलता है। हमारे यहां प्रेम प्रसंगों से पुलिस ही दो चार होती है। दो दिलों को समझने के सारे मामले पुलिस के सुपुर्द कर दिए जाते हैं।
फिर कहना चाहूंगी कि यह सुकून बहुत बड़ा है कि कोई है जो आपके वजूद को जरूरी मानता है। स्त्री होने के नाते कह सकती हूं कि एक स्त्री इस चाहत के दम पर पूरी उम्र गुजार सकती है। वह प्रवृत्ति और प्रकृति से ऐसी ही है. समय से परे मिलने की ख्वाहिश उसके भीतर कभी नहीं मरती.
सावित्री ले आई सत्यवान को छीनकर भगवान से...
शंकुतला भी जी गई जंगल को दुष्यन्त की याद में ...
अर्जुन के लिए ही वरे द्रोपदी ने पांच पति...
मीरा भी समाई अपने कृष्ण में..
और सीता समा गई धरती में राम की बेरुखी पर।
क्योंकि स्त्री जानती है कि अपने प्रियतम के बिना वह सिर्फ पत्थर है। पत्थर जो केवल सतह पर ही दुनिया का असर लेता है। भीतर तो वही शून्य है जिसमें नृत्य करती हैं वह और उसकी यादें।