
जिस धज से कोई मकतल में गया वो शान सलामत रहती है
ये जान तो आनी जानी है इस जां की तो कोई बात नहीं
बकौल फैज़ अहमद फैज़ मुंबई मोर्चे पर अपना सर्वस्व त्याग करने वाले जांबाजों की शान निस्संदेह सदियों तक सलामत रहेगी। यह रुखसती फक्र के साथ है। क्रंदन ,विलाप ,जुगुप्सा भी है लेकिन नेताओं के लिए । हेमंत करकरे ,संदीप उन्नीथन और गजेन्द्र सिंह बेहद प्रखर ,पढ़े -लिखे ,फिट , काबिल और अपने काम में निष्णात रहे । ए टी एस प्रमुख चाहते तो नीचे आर्डर पास कर सकते थे लेकिन उन्होंने मोर्चा संभाला । अपेक्षाकृत कमज़ोर बुलेटप्रूफ ,हेलमेट जो उनका नहीं था और रायफल के साथ मैदान में कूद पड़े । सीने पर गोलियां खाई जिस पर नेता तोहमत लगा रहे थे कि वे पूर्वाग्रही हैं । करकरे अगर पूर्वाग्रही हैं तो सारा देश ऐसा हो जाए । सबसे पहले ये नेता जो सिवाय एक सोच रखने के कुछ नहीं कर पाये। कोई उसके पक्ष में कोई इसके । बराबरी की नज़र कभी किसी की नहीं रही अगर हो पाती तो इस कुर्बानी की नौबत ही नहीं आती । politician को देख जहाँ टीवी बंद करने का जी चाहता है वहीं जवान के आगे हाथ ख़ुद ब ख़ुद जुड़ जाते हैं । दरअसल यह नेताओं का रवैया ही है जो संदीप के पिता से कहलवा रहा है किउनका बेटा शहीद नहीं , देश के काम आया है । ऐसा ही कुछ ndtv पर संजना कपूर ने भी बरखा दत्त और प्रोनोय रॉय से -कहा इसे युद्ध न कहे । युद्ध में आपको पता होता है की आपका दुश्मन कौन है ।लक्ष्य सामने होता है लेकिन यह दहशतगर्दी है । जघन्य हरकत हे ये । क्या यह विचारणीय नहीं है कि शहादत के बिना हम कब तक हम अपने बेहतरीन जवानों को मौत के मुहँ में धकेलते रहेंगे? क्या अब भी अन्तिम निर्णय का वक़्त नहीं आया है ?