आज सुबह एक अख़बार में एक बड़े लेखक के लेख की शुरुआत में वही बात थी . हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता लेकिन हर अतंकवादी मुसलमान होता हे. हालाँकि लेख में सिख ,नाजी , तमिल हिंदू, तमाम आतंकवादियों का ज़िक्र हे लेकिन निजी तौर पर लगता हे कि यह मज़हबी चश्मा कई बार हमें कमज़ोर करता है. आतंक का कोई धर्म नहीं होता यह हर बार साबित हो रहा हे. मुद्दे पर आते हैं भारतीय मुसलमान पर. उन्होंने लिखा हे वह इस्तेमाल हो रहा है . कोई कब इस्तेमाल होता है? गरीबी अशिक्षा के अलावा एकं और खास कारण है नफरत. हम उन्हें अस्प्रश्य समझते हैं . मुझे याद हे जब मै और मेरे पति किराये पर मकान देखने जाते तो लोग हमारा खूब स्वागत करते. अरे आप इस अख़बार में काम करते हैं आप इन्हें जानतें हैं, उन्हें जानते हैं . कबसे रहने के लिए आयेंगे ? आपका नाम क्या हे? मैं शाहिद मिर्जा और ये मेरी पत्नी वर्षा. हमारी हिंदू मुस्लिम शादी है इसको पकाना आता नही इसलिए नॉन वेज कि चिंता न करें ये लीजिये किराया शाहिदजी कहते ... मकान मालिक का चेहरा सफ़ेद पड़ रहा है शब्द गुम हो रहे हैं . अभी मेरी बीवी घर पर नहीं है . आप बाद में फोन कर लेना. ऐसा एक बार नही ७७ बार हमारे साथ हुआ. मेरी समझ काम नहीं करती थी कि ये सब हो क्या रहा है .इससे पहले जब मेरे पति कहते थे कि मुसलमान को कोई मकान नहीं देता मुझे यकीन नहीं होता था लेकिन जब प्रत्यक्ष देखा तो मन घृणा से भर उठा . उनकी नफरत देख मेरी आत्मा छलनी हो आती थी .कभी-कभी तो लगता जैसे खून खोल रहा हे . मेरे पति शांत बने रहते जैसे उन्हें तो इसकी आदत पड़ चुकी थी . इस बीच जो मकान दे देता वे उनके ऋणी हो जाते . खूब मान देते उन्हें वह सामान्य मालिक मकान फ़रिश्ता सा लगता था .वे शांत थे लेकिन मैं भाजपा की वोटर एक अजीब दुनिया से रूबरू होकर गिल्ट में आ गयी थी. एक और बात जब शाहिदजी ने अपनी माँ से पूछा माँ ये अफज़ल[terrorist] जैसे लोगों का क्या होना चाहिए माँ ने एक क्षण नही लगाकर कहा बेटा इन्हे तो सरे आम चौराहे पर फांसी लगनी चाहिए ताकि किसी और अफज़ल की ऐसा करने से पहले रूह काँपे . शाहिद मिर्जा ने इसी शीर्षक के साथ एक लेख लिखा, छपने के दो दिन बाद तक उनके मोबाइल की घंटी बधाईयों से गूंजती रही . वंदे मातरम पर भी उन्होंने लिखा वंदे मातरम यानी माँ तुझे सलाम .मुबारकबाद फ़िर गूंजी।
स्वयं ये लेखक महोदय भी शाहिदजी को साधूसिफत इंसान कह चुके हैं लेकिन संदेह जारी है .यूरोप के हवाई अड्डे पर छोटी सी कैंची छीन ली जाती है .उसके हर ख़त की जांच होती हे . हर वक्त अग्नि परीक्षा के लिए खड़ा है क्योंकि उसे भारत से प्यार है .दूसरा हर मुल्क उसके लिए अजनबी है . उसे भी इंतज़ार हे आतंकवादी के सूली पर चढ़ने का .उसकी देशभक्ति पर शक है .वह सीना चीरना चाहता हे लेकिन राम के दर्शन नहीं करा पाता.लम्हों कि खता जाने कितनी सदियाँ भुगतेंगी ?
स्वयं ये लेखक महोदय भी शाहिदजी को साधूसिफत इंसान कह चुके हैं लेकिन संदेह जारी है .यूरोप के हवाई अड्डे पर छोटी सी कैंची छीन ली जाती है .उसके हर ख़त की जांच होती हे . हर वक्त अग्नि परीक्षा के लिए खड़ा है क्योंकि उसे भारत से प्यार है .दूसरा हर मुल्क उसके लिए अजनबी है . उसे भी इंतज़ार हे आतंकवादी के सूली पर चढ़ने का .उसकी देशभक्ति पर शक है .वह सीना चीरना चाहता हे लेकिन राम के दर्शन नहीं करा पाता.लम्हों कि खता जाने कितनी सदियाँ भुगतेंगी ?